01 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में साल 2021 में हुए बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रवैया अपनाया है। कोर्ट ने प्रयागराज डेवलपमेंट ऑथोरिटी (पीडीए) को पांच याचिकाकर्ताओं को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कुल 50 लाख रुपये के इस भुगतान को छह सप्ताह के भीतर पूरा करने का आदेश दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नोटिस जारी होने के महज 24 घंटे के भीतर मकानों को ढहा देना पूरी तरह अवैध है। कोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन माना और पीडीए के इस कदम की कड़ी निंदा की। यह फैसला उन प्रभावित लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जिन्होंने अपने घरों को अचानक तोड़े जाने के खिलाफ न्याय की गुहार लगाई थी।
जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, ‘यह मुआवजा इसलिए भी जरूरी है ताकि भविष्य में सरकारें बिना उचित प्रक्रिया के लोगों का मकान गिराने से परहेज करें.’ जजों ने हाल ही में सामने आए एक वीडियो का भी हवाला दिया, जिसमें गिरती हुई झोपड़ी से एक बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही है. उन्होंने कहा कि अलग-अलग रूप में ऐसी घटनाएं हर जगह देखने को मिल रही हैं.

रविवार, 7 मार्च 2021 को हुई इस कार्रवाई में वकील जुल्फिकार हैदर और प्रोफेसर अली अहमद समेत कुल 5 लोगों के मकान गिराए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि उन्हें शनिवार, 6 मार्च की रात को नोटिस मिला था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जिस जमीन पर ये मकान बने थे, वह लोग उसके लीज होल्डर थे. प्रशासन ने उस जगह को माफिया और राजनेता अतीक अहमद से जोड़ते हुए यह कार्रवाई की थी. इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के इस बयान को रिकॉर्ड पर लिया था कि वह भूमि नजूल लैंड थी. उसे सार्वजनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाना था. साल 1906 से जारी लीज 1996 में खत्म हो चुका था. याचिकाकर्ताओं ने लीज होल्ड को फ्री-होल्ड करने का आवेदन दिया था. उन आवेदनों को 2015 और 2019 में खारिज किया जा चुका है. ऐसे में बुलडोजर कार्रवाई के जरिए अवैध कब्जे को हटाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जमीन पर अधिकार को लेकर वह टिप्पणी नहीं कर रहा है. याचिकाकर्ता उसके लिए अपीलीय प्राधिकरण के सामने अपनी बात रखें. यह आदेश सिर्फ इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि मकानों को गिराने का तरीका अवैध था. जजों ने बुलडोजर एक्शन पर पिछले साल आए सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच के फैसले का हवाला दिया. उस फैसले में कहा गया था कि लोगों को पर्याप्त समय और कानूनी बचाव का मौका देने के बाद ही विध्वंस की कार्रवाई हो सकती है.
कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण ने लीज को लेकर 2015 और 2019 में जारी आदेशों को रिकॉर्ड पर नहीं रखा है. वह उसे याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध करवाए, ताकि वह उसके आधार पर अपीलीय प्राधिकरण में अपनी बात रख सकें. कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण ने कई बार नोटिस जारी करने की बात कही, लेकिन उसे यह प्रयास करना चाहिए था कि नोटिस उन लोगों तक पहुंचे, जिनके मकान पर कार्रवाई होनी है. 1 मार्च 2021 का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से 6 मार्च को याचिकाकर्ताओं को मिला. उन्हें अपने बचाव में कोई कदम उठाने का मौका नहीं मिला.
जजों ने इस तरह की कार्रवाई को अंतरात्मा को झकझोरने वाला बताया. उन्होंने कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को सम्मान से जीवन का अधिकार देता है? आवास का अधिकार उसका एक अभिन्न हिस्सा है.’ यूपी सरकार के लिए पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास 2-3 मकान हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि इससे आपको अचानक बुलडोजर चला देने का लाइसेंस नहीं मिल जाता. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा था कि क्या वह अपने खर्च पर दोबारा निर्माण करना चाहेंगे, लेकिन अगर वह जमीन पर दावा हार गए तो मकान गिरा दिए जाएंगे. याचिकाकर्ताओं ने खुद को आर्थिक रूप से कमजोर बताते हुए अपने खर्चे पर दोबारा निर्माण से मना कर दिया.
रिपोर्ट : सुरेंद्र कुमार
