जिनेवा कन्वेंशन:196 देशों ने स्वीकार किया, युद्धबंदियों की रक्षा में ऐतिहासिक कदम:जानिए

15 मई 2025: जिनेवा कन्वेंशन, जो युद्धबंदियों, घायल सैनिकों, और नागरिकों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का आधार है, एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, पाकिस्तान ने जिनेवा कन्वेंशन के तहत भारतीय बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को रिहा किया। यह घटना इस कन्वेंशन की प्रासंगिकता और युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के इसके महत्व को रेखांकित करती है।

जिनेवा कन्वेंशन क्या है?

जिनेवा कन्वेंशन चार अंतरराष्ट्रीय संधियों और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल का एक समूह है, जो 1864 से 1949 के बीच जिनेवा, स्विट्जरलैंड में संपन्न हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों की रक्षा करना और युद्धबंदियों, घायल सैनिकों, चिकित्सा कर्मियों, और नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है।

  • पहला कन्वेंशन (1864): युद्ध के दौरान घायल और बीमार सैनिकों की सुरक्षा।
  • दूसरा कन्वेंशन: समुद्र में घायल, बीमार, और जलपोत पर मौजूद सैन्य कर्मियों की सुरक्षा।
  • तीसरा कन्वेंशन (1929, 1949 में संशोधित): युद्धबंदियों (प्रिजनर ऑफ वॉर) के साथ मानवीय व्यवहार, जिसमें उचित भोजन, चिकित्सा, और सुरक्षा शामिल है।
  • चौथा कन्वेंशन (1949): कब्जे वाले क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा, सामूहिक दंड और हिंसा पर रोक।

इन संधियों को 196 देशों ने स्वीकार किया है, और यह शांतिकाल, घोषित युद्ध, या अघोषित सशस्त्र संघर्षों में भी लागू होती हैं।

हाल की घटनाएं: भारत-पाकिस्तान तनाव और जिनेवा कन्वेंशन

हाल ही में भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ा, जिसमें पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमलों का प्रयास किया। भारतीय वायुसेना ने इन हमलों को नाकाम कर दिया। इस दौरान, बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान ने हिरासत में लिया था। जिनेवा कन्वेंशन के तीसरे कन्वेंशन के तहत, पाकिस्तान ने उन्हें रिहा किया, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मानवीय कदम के रूप में देखा।

पाकिस्तान ने इस रिहाई को जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 3 के पालन के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें युद्धबंदियों के साथ बर्बर व्यवहार, भेदभाव, या अपमान न करने की बात कही गई है। युद्धबंदियों को उचित भोजन, चिकित्सा सुविधा, और सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य है। इस घटना ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में कन्वेंशन की भूमिका को फिर से उजागर किया।

इसके अतिरिक्त, भारत ने ऐसी घटनाओं के जवाब में अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय बैठक की, जिसमें जिनेवा कन्वेंशन के अनुपालन को भी रेखांकित किया गया।

जेनेवा संधि के मुख्य नियम इस प्रकार हैं;

1. युद्धबंदियों से उनका नाम, सैन्य पद और नंबर पूछा जा सकता है और युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्‍म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जा सकता है साथ ही उसे डराया धमकाया या मारा पीटा नहीं जा सकता है.

2. घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाती है यदि कोई घाव या चोट लगी है तो उसका उपचार भी किया जाता है.

3. युद्धबंदियों को खाना पीना और जरूरत की सभी चीजें दी जाती है.

4. किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता है.

5. किसी देश का सैनिक (स्त्री या पुरुष) जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है.

6. युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता है.

ऐतिहासिक संदर्भ: भारत और जिनेवा कन्वेंशन

भारत ने हमेशा जिनेवा कन्वेंशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, भारत ने 90,000 से अधिक पाकिस्तानी युद्धबंदियों को सकुशल वापस भेजकर इस कन्वेंशन का पालन किया। यह एक वैश्विक उदाहरण बन गया।

हालांकि, पाकिस्तान पर अतीत में कन्वेंशन के उल्लंघन के आरोप लगे हैं। उदाहरण के लिए, 1999 के करगिल युद्ध में शहीद कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों के शवों के साथ अमानवीय व्यवहार का मामला सामने आया, जिसे भारत ने कन्वेंशन का उल्लंघन बताया।

वैश्विक परिदृश्य में चुनौतियां

जिनेवा कन्वेंशन के बावजूद, इसका उल्लंघन वैश्विक स्तर पर देखा गया है। हाल के उदाहरणों में:

जिनेवा कन्वेंशन, जो युद्धबंदियों, घायल सैनिकों, और नागरिकों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का आधार है, एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, पाकिस्तान ने जिनेवा कन्वेंशन के तहत भारतीय बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को रिहा किया। यह घटना इस कन्वेंशन की प्रासंगिकता और युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के इसके महत्व को रेखांकित करती है।

जिनेवा कन्वेंशन क्या है?

जिनेवा कन्वेंशन चार अंतरराष्ट्रीय संधियों और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल का समूह है, जो 1864 से 1949 के बीच जिनेवा, स्विट्जरलैंड में संपन्न हुआ। इसका उद्देश्य युद्ध की क्रूरता को सीमित करना और युद्धबंदियों, घायल सैनिकों, चिकित्सा कर्मियों, और नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है।

  • पहला कन्वेंशन (1864): युद्ध के दौरान घायल और बीमार सैनिकों की सुरक्षा।
  • दूसरा कन्वेंशन: समुद्र में घायल, बीमार, और जलपोत पर मौजूद सैन्य कर्मियों की सुरक्षा।
  • तीसरा कन्वेंशन (1929, 1949 में संशोधित): युद्धबंदियों (प्रिजनर ऑफ वॉर) के साथ मानवीय व्यवहार, जिसमें उचित भोजन, चिकित्सा, और सुरक्षा शामिल है।
  • चौथा कन्वेंशन (1949): कब्जे वाले क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा, सामूहिक दंड और हिंसा पर रोक।

इन संधियों को 196 देशों ने स्वीकार किया है, और यह शांतिकाल, घोषित युद्ध, या अघोषित सशस्त्र संघर्षों में भी लागू होती हैं। कन्वेंशन का तीसरा हिस्सा विशेष रूप से युद्धबंदियों पर केंद्रित है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें डराया-धमकाया न जाए, उनके साथ भेदभाव न हो, और उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी हों।

हाल की घटनाएं: भारत-पाकिस्तान तनाव और जिनेवा कन्वेंशन

हाल ही में भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ा, जिसमें पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमलों का प्रयास किया। भारतीय वायुसेना ने इन हमलों को नाकाम कर दिया। इस दौरान, बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान ने हिरासत में लिया था। जिनेवा कन्वेंशन के तीसरे कन्वेंशन के अनुच्छेद 3 के तहत, जिसमें युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार की बात कही गई है, पाकिस्तान ने उन्हें रिहा किया। इस कदम को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मानवीय और कन्वेंशन के पालन के रूप में सराहा।

पाकिस्तान ने इस रिहाई को जिनेवा कन्वेंशन के अनुपालन के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें युद्धबंदियों को उचित भोजन, चिकित्सा सुविधा, और सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य है। युद्धबंदियों से केवल उनका नाम, रैंक, और सर्विस नंबर पूछा जा सकता है; उनकी जाति, धर्म, या अन्य व्यक्तिगत जानकारी मांगना निषिद्ध है। इस घटना ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में कन्वेंशन की महत्वपूर्ण भूमिका को फिर से उजागर किया।

इसके जवाब में, भारत ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक तैयारियों को मजबूत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय बैठक की, जिसमें जिनेवा कन्वेंशन के अनुपालन और राष्ट्रीय हितों की रक्षा पर जोर दिया गया। इसके अलावा, भारत ने ग्वालियर, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान में अस्पतालों की छतों पर रेड क्रॉस के चिह्न लगाए, ताकि कन्वेंशन के तहत चिकित्सा इकाइयों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।

ऐतिहासिक संदर्भ: भारत और जिनेवा कन्वेंशन

भारत ने जिनेवा कन्वेंशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बार-बार साबित की है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, भारत ने 90,000 से अधिक पाकिस्तानी युद्धबंदियों को सकुशल वापस भेजकर कन्वेंशन का पालन किया, जिसे वैश्विक स्तर पर सराहा गया। 2019 में, जब भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान ने हिरासत में लिया था, तब भी जिनेवा कन्वेंशन के तहत उनकी रिहाई सुनिश्चित की गई।

हालांकि, पाकिस्तान पर कन्वेंशन के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं। 1999 के करगिल युद्ध में, शहीद कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों के शवों के साथ अमानवीय व्यवहार का मामला सामने आया, जिसे भारत ने कन्वेंशन का गंभीर उल्लंघन बताया। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि कन्वेंशन का पालन सभी पक्षों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तनावपूर्ण परिस्थितियों में।

वैश्विक परिदृश्य: उल्लंघन और चुनौतियां

जिनेवा कन्वेंशन के बावजूद, इसके उल्लंघन की घटनाएं वैश्विक स्तर पर देखी गई हैं। कुछ हाल के उदाहरण:

  • मोरक्को-सहारवी विवाद: मोरक्को पर सहारवी राजनीतिक कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के आरोप लगे हैं, जो चौथे कन्वेंशन का उल्लंघन है। संयुक्त राष्ट्र ने इसकी निंदा की है।
  • इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष: गाजा और वेस्ट बैंक में नागरिकों पर सामूहिक दंड और हिंसा की घटनाएं चौथे कन्वेंशन के खिलाफ मानी गई हैं।
  • भारत-चीन गलवान संघर्ष (2020): लद्दाख में भारत-चीन के बीच हिंसक झड़प के बाद, रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति (ICRC) ने दोनों देशों से कन्वेंशन का पालन करने का आग्रह किया था।

इन उल्लंघनों के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कन्वेंशन को और सख्ती से लागू करने की मांग बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र और ICRC जैसे संगठनों को उल्लंघन करने वाले देशों पर कूटनीतिक और कानूनी दबाव बढ़ाना चाहिए।

जिनेवा कन्वेंशन की प्रासंगिकता

जिनेवा कन्वेंशन युद्ध के अमानवीय प्रभावों को कम करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह सुनिश्चित करता है कि युद्धबंदी और नागरिक, चाहे किसी भी देश के हों, सम्मान और सुरक्षा के हकदार हैं। भारत जैसे देश, जो इसकी पालना करते हैं, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी नैतिक और कूटनीतिक प्रतिष्ठा मजबूत करते हैं।

हाल की भारत-पाकिस्तान घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि कन्वेंशन आज भी प्रासंगिक है। पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई और अस्पतालों पर रेड क्रॉस चिह्न जैसे कदम कन्वेंशन के प्रावधानों को लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।

आगे की राह

जिनेवा कन्वेंशन के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए वैश्विक सहयोग आवश्यक है।

  1. जागरूकता और प्रशिक्षण: सभी देशों की सेनाओं को कन्वेंशन के नियमों का प्रशिक्षण दिया जाए।
  2. सख्त निगरानी: ICRC और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन उल्लंघनों की स्वतंत्र जांच करें।
  3. कूटनीतिक दबाव: उल्लंघन करने वाले देशों पर प्रतिबंध या कूटनीतिक अलगाव जैसे कदम उठाए जाएं।

भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के बीच हाल की घटनाएं दिखाती हैं कि जिनेवा कन्वेंशन न केवल युद्धबंदियों की रक्षा करता है, बल्कि शांति और कूटनीति के लिए भी एक मंच प्रदान करता है।

रिपोर्ट : सुरेंद्र कुमार

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