धर्मशाला, 6 जुलाई 2025: तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को अपना 90वां जन्मदिन धर्मशाला के त्सुगलागखांग मंदिर में भव्य समारोह के साथ मनाया। इस अवसर पर दुनियाभर के नेताओं ने उन्हें शुभकामनाएं दीं और तिब्बती लोगों के मानवाधिकारों व धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति समर्थन जताया, जिसने चीन की चिंता बढ़ा दी। दलाई लामा ने अपनी उत्तराधिकार योजना की घोषणा कर चीन के दावों को खारिज किया, जिससे तिब्बत के भविष्य को लेकर भूराजनीतिक तनाव और गहरा गया।
वैश्विक नेताओं का समर्थन: चीन को झटका

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X पर लिखा, “1.4 अरब भारतीयों की ओर से मैं परम पावन दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। वह प्रेम, करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन के स्थायी प्रतीक हैं।” अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी X पर पोस्ट करते हुए कहा, “दलाई लामा एकता, शांति और करुणा के संदेश से प्रेरणा देते हैं। अमेरिका तिब्बतियों के मानवाधिकारों और उनकी विशिष्ट भाषाई, सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें बिना हस्तक्षेप के अपने धार्मिक नेता चुनने का अधिकार भी शामिल है।”
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने भी शुभकामनाएं दीं और कहा, “आपके शांति और मानवाधिकारों के प्रति समर्पण के मूल्य ताइवान में गहरे तक प्रतिध्वनित होते हैं।” यूरोपीय संघ के सांसद रेनहोल्ड लोपाटका ने X पर लिखा, “दलाई लामा अहिंसा, मानवाधिकार और सहानुभूति की आजीवन आवाज हैं। यूरोपीय संघ ने उन्हें कई बार सम्मानित किया है।” इसके अलावा, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू बुश के वीडियो संदेश समारोह में प्रसारित किए गए, जिनमें ओबामा ने उन्हें “सबसे कम उम्र का 90 वर्षीय” और क्लिंटन ने “दयालु दुनिया के निर्माता” बताया।
दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना: चीन को चुनौती
दलाई लामा ने अपने जन्मदिन से पहले बुधवार को एक वीडियो संदेश में घोषणा की कि उनकी मृत्यु के बाद गदेन फोदरांग ट्रस्ट ही उनके उत्तराधिकारी की खोज और पहचान करेगा। उन्होंने स्पष्ट किया, “कोई भी बाहरी शक्ति, विशेष रूप से चीन, इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। मेरा उत्तराधिकारी ‘मुक्त विश्व’ में जन्म लेगा।” यह बयान चीन के उस दावे के खिलाफ था, जिसमें बीजिंग ने कहा था कि अगले दलाई लामा की नियुक्ति उसकी मंजूरी से होनी चाहिए।
चीन ने तिब्बत पर 1950 में कब्जा किया था और 1959 में असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। बीजिंग दलाई लामा को “अलगाववादी” मानता है और उसने तिब्बती बौद्ध धर्म पर नियंत्रण की कोशिश की है। 1995 में, दलाई लामा द्वारा चुने गए पंचेन लामा, गेदुन चोएक्यी न्यिमा, को चीन ने हिरासत में लिया और उनकी जगह अपने चुने हुए ग्याल्त्सेन नोर्बु को स्थापित किया, जो हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले।
धर्मशाला में उत्सव, तिब्बतियों में उत्साह
भारी बारिश और कोहरे के बावजूद, धर्मशाला में हजारों तिब्बती और बौद्ध अनुयायी, लाल वस्त्रधारी भिक्षु, स्कूली बच्चे और वैश्विक हस्तियां, जैसे हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेरे, समारोह में शामिल हुए। सांस्कृतिक प्रदर्शन, प्रार्थनाएं और बॉलीवुड गायकों के प्रदर्शन ने आयोजन को यादगार बनाया। दलाई लामा ने अपने संदेश में कहा, “मैं एक साधारण बौद्ध भिक्षु हूं। मानवता की सेवा और करुणा मेरा उद्देश्य है।” उन्होंने सभी से धार्मिक सद्भाव और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की अपील की।
भूराजनीतिक तनाव: तिब्बत का भविष्य
दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भूराजनीतिक भी है। तिब्बतियों को डर है कि चीन एक प्रतिद्वंद्वी दलाई लामा की नियुक्ति कर तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करेगा। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के नेता पेनपा त्सेरिंग ने कहा, “चीन द्वारा चुना गया दलाई लामा न तो तिब्बतियों और न ही विश्व द्वारा स्वीकार किया जाएगा।” अमेरिका ने भी अपनी तिब्बत नीति में स्पष्ट किया कि वह तिब्बतियों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का समर्थन करता है।
दलाई लामा की “मध्यम मार्ग” नीति, जो तिब्बत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता की मांग करती है, ने उन्हें वैश्विक समर्थन दिलाया है। उनकी यह घोषणा कि अगला दलाई लामा तिब्बत या चीन के बाहर जन्म लेगा, बीजिंग के लिए एक बड़ा झटका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद भारत-चीन और अमेरिका-चीन संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
दलाई लामा का संदेश: करुणा और शांति
अपने जन्मदिन पर दलाई लामा ने कहा, “भौतिक विकास के साथ-साथ मानसिक शांति और करुणा पर ध्यान देना जरूरी है। यह दुनिया को बेहतर बनाने में मदद करेगा।” उनकी यह सादगी और शांति का संदेश वैश्विक स्तर पर प्रेरणा देता रहा है। 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने तिब्बती संस्कृति और पहचान को जीवित रखने के लिए छह दशकों तक संघर्ष किया है।
दलाई लामा का 90वां जन्मदिन न केवल एक उत्सव है, बल्कि तिब्बती लोगों की स्वतंत्रता, संस्कृति और धार्मिक अधिकारों के लिए एक वैश्विक आह्वान भी है। उनके उत्तराधिकार की घोषणा ने तिब्बत के भविष्य को लेकर एक नया अध्याय शुरू किया है, जो चीन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
रिपोर्ट : सुरेंद्र कुमार
