सोशल मीडिया के माध्यम से बच्चों पर बढ़ता गंभीर खतरा

आजकल डिजिटल होते बच्चों पर बढ़ते खतरे चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं। बच्चों के मोबाइल पर बहुत अधिक समय बिताने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं तो बढ़ ही रही हैं, बच्चे एकाकी प्रवृत्ति, हिंसक एवं अस्वस्थ गतिहीन जीवनशैली के पात्र बनते जा रहे हैं। छोटी अवस्था में बच्चे अधिक समय ऑनलाइन बिताने के कारण साइबरबुलिंग, ऑनलाइन गेम्स, इंस्टाग्राम, फेसबुक, युटुब और अन्य जोखिमों के शिकार भी हो रहे हैं। सोशल मीडिया बच्चों एवं युवाओं के संवाद का जैसे-जैसे अभिन्न माध्यम बन कर जितना सार्थक सिद्ध हो रहा है उससे भी ज्यादा आज की युवा पीढ़ी पर ये खतरा भी मंडरा रहा है। इसके हेतु बच्चों एवं किशोरों को बचाने के लिये भारत में वर्ष 2023 में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट लाया गया, इस एक्ट के नियमों के तहत नाबालिगों के लिये सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिये माता-पिता या अभिभावकों की सहमति अनिवार्य है। निश्चिय ही यह बच्चों पर बढ़ रहे खतरों से सुरक्षा देने के लिये एक प्रभावी एवं सराहनीय कदम है।
पांच वर्ष से अठारह वर्ष के बच्चों में मोबाइल, इंटरनेट एवं टेक्नोलॉजी एडिक्शन की लत बढ़ रही है,जिनमें स्मार्ट फोन,स्मार्ट वॉच, टैब, लैपटॉप आदि सभी शामिल हैं। यह समस्या केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया के हर देश की है। ऐसे अनेक ऑनलाइन लत के शिकार रोगी बच्चें अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, जिनमें इस लत के चलते बच्चे बुरी तरह तनावग्रस्त थे। कुछ दोस्त व परिवार से कट गए, कुछ तो ऐसे थे जो मोबाइल न देने पर पेरेंट्स पर हमला तक कर देते थे। बच्चे आज के समय में अपने आप को बहुत जल्दी ही अपनी उम्र से ज्यादा बड़ा महसूस करने लगे हैं। अपने ऊपर किसी भी पाबंदी को बुरा समझते हैं, चाहे वह उनके हित में ही क्यों ना हो। इंटरनेट की यह आभासी दुनिया ना जाने और कितने मासूम व छोटे बच्चों को अपने जाल में फंसाएगी और उनका जीवन तबाह करेगी? बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर निगरानी व उन्हें उसके उपयोग की सही दिशा दिखाना बेहद ज़रूरी है। यदि मोबाइल की स्क्रिन और अंगुलियों के बीच सिमटते बच्चों के बचपन को बचाना है, तो एक बार फिर से उन्हें मिट्टी से जुड़े खेल, दिन भर धमाचौकड़ी मचाने वाले और शरारतों वाली बचपन की ओर ले जाना होगा। ऐसा करने से उन्हें भी खुशी मिलेगी और वे तथाकथित इंटरनेट से जुड़े खतरों से दूर होते चले जाएंगे। इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग की वजह से साइबर अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। हमारी सरकार एवं सुरक्षा एजेंसियां इन अपराधों से निपटने में विफल साबित हो रही हैं। आज के डिजिटल युग में, माता-पिता के पालन-पोषण का तरीका भी काफी हद तक बदल गया है। टेक्नोलॉजी के बढ़ते चलन और डिजिटल उपकरणों के व्यापक उपयोग के साथ, डिजिटल युग में बच्चों के पालन-पोषण में और ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है। आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार के कारण जीवन में आ रहे बदलाव ने कई ज्वलंत एवं चुनौतीपूर्ण मुद्दों को सामने ला दिया है, जिनसे माता-पिता को जूझना पड़ता है, जिससे पालन-पोषण का कार्य और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। खुद को जानकारी से लैस करके और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाकर, हम अपने बच्चों को जिम्मेदारी से डिजिटल दुनिया में सावधानीपूर्वक हिस्सा बनने के लिए सशक्त बनाते हुए उनके लिए एक स्वस्थ और संतुलित डिजिटल वातावरण बना सकते हैं। अपने बच्चों को तकनीक का उपयोग ऐसे तरीकों से करने में मदद करें जो रचनात्मकता और सीखने को बढ़ावा दें। उन्हें शैक्षिक अनुसंधान कला ढूंढने, डिजिटल कला बनाने जैसे नए कौशल सीखने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उन्हें तकनीक को सिर्फ मनोरंजन के बजाय विकास एवं ज्ञान अर्जन के साधन के रूप में देखने में मदद मिल सकती है। तकनीक के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों को जानकर और स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करके हम बच्चों को एक बुरी आदत से छुड़ाकर सर्वांगीण विकास करने में मदद कर सकते हैं।बच्चों में बढ़ती ऑनलाइन गैमस् की आदत भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. इसके घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं और लोगों के बीच इसे आज इंटरनेट का दायरा इतना असीमित है कि अगर उसमें सारी सकारात्मक उपयोग की सामग्री उपलब्ध हैं तो बेहद नुकसानदेह, आपराधिक और सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली गतिविधियां भी बहुतायत में मौजूद हैं।इसके संबंध में आवश्यक राष्ट्रीय नीति जल्द ही बनी चाहिए, ताकि इन बच्चों और किशोरों को सही दिशा और मार्गदर्शन मिल सके।।
लेखक
डॉ अमरचंद वर्मा “अध्यापक”
मल्टीपल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय*हनुमान नगर नारवा खींवसर नागौर

डॉ. अमरचंद वर्मा

डॉ अमरचंद वर्मा पेशे से खिवंसर, नागौर, राजस्थान में अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। ये राजस्थान राज्य के एक छोटे से गांव गढ़भोपजी, खंडेला, सीकर निवासी हैं। उन्होंने शिक्षा, साहित्य, कला, समाज सेवा व लेखन में अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलाई। ये 250 से अधिक अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्यस्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। इनका नाम वर्ड बुक का रिकॉर्ड लंदन, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णिम पुरस्कार इंडियन बुक का रिकॉर्ड तथा एशिया बुक का रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने के साथ-साथ प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मदर टेरेसा से सम्मानित राजस्थानी व्यक्ति हैं। अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच हमीरवाणी द्वारा लगातार तीन बार प्रथम स्थान प्राप्त प्रथम व्यक्ति, साथ ही इन्होंने 2 लाख से ऊपर गरीब जरूरतमंद विद्यार्थियों, व्यक्तियों की सहायता करने के कारण गरीबों के मसीहा की उपाधि से भी जाने जाते हैं।।

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